त्यौहार त्यौहार अपने साथ कितने खुशियां लाता अपने साथ दूर परिजनों को समेटते आता उनको रिश्तों और प्यार की याद दिलाता घर के आंगन में एक नई रौनक लाता त्यौहार अपने साथ कितने खुशियां लाता उत्साह, उमंग की एक लहर लाता नई ऊर्जा का संचार लाता सभी के मुख एक मुस्कान लाता दीपावली छठ जैसे कई रूप…
बिहार चुनाव प्रचार ✍️वे नेता है विभिन्न नकाब में आयेगे वे नेता है विभिन्न पोशाक में आयेगे वे नेता है विभिन्न किरदार में आयेगे वे नेता है विभिन्न कार में भी आयेगे (क्यों आयेगे भाई) चुनाव आया है सत्ते का प्रलोभन खींच लाया है नेता बनने से पहले अपने वादे बताना है और दूसरे हमसाथी पे किच उछालना…
मेरी जिंदगी एक गुलाब के फूल ✍️मेरी जिंदगी बन गई है एक गुलाब के फूल चुभा है मेरा कांटा उस माली को जो तोड़ने आए थे फूल इस मौसम में मेरी कली नहीं बन पाई फूल मेरी जिंदगी बन गई है एक गुलाब के फूल अब कैसे बनू किसी मंच के सजावट के हार कैसे बनू किसी गुलदस्ते के जगहों के हिस्सेदार कैसे बनू दो…
तुम्हारी मंजिल गंतव्य ✍️तेरी जिंदगी में कई अंधेरी राते भी आयेगे तेरे जिंदगी में कई राहें सुनसान भी होगे तू इस अंधेरे और अकेलापन से कभी मत घबराना हर अंधेरी रात के बाद एक नई सवेरा होगा बुलंद शिखरों पर तुम्हारा एक दिन बसेरा होगा दृढ़ संकल्प के साथ, आगे बढ़ता जाना अपने मंजिल की तरफ बढ…
कैसे करू पहचान ✍️कपड़ों से होती है पहचान सूट बुट वाला पाता सम्मान फटे कपड़े वाला नहीं बचा पाता अभिमान अब तो गरीब गरीब को नहीं कर पाता पहचान नकाब के दुनिया में किरदार से रह जाते अनजान कोई चेहरे छुपा लेता बन बेवकूफ और अनजान तो कोई अपनापन दिखा पीछे से खंजरों से कर जाता वार अमरजीत पूछता कैसे …
लाचार किसान ✍️आजकल परिंदे अपनी जान कहा बचा पाते वे उन परिंदे को अपनी नई पंख लगा के उड़ा देते इमारती दुनिया में कच्ची मकान में रहने वाले मजबूरन परिंदे अपनी ही आशियाना खुद तोड़ देते वे निर्वाचन से पहले पूछते उनके अरमानों को दे सब्सिडी की लालच टैक्सो से ही गर्दन दबोच देते मौसमों के मार, ब…
दरिंदे भले इंसान के जैसा हूं बहू था पर इंसान नहीं था वासना की कामना धर वे एक हैवान था मोहब्बत के लिबास पहने जिस्म के प्यासा था आबरू को लूटने वे दरिंदे हैवानियत का गुलाम था "फिर एक निर्भया जाग गई है दरिंदगी इंसानियत को शर्मसार कर गई है फिर चारो तरफ होगी शोर,निकलेगे कैंडल मार्च अब तो …
घड़ी के तीन सुइयां होती है जिसमें एक सुई का नाम सेकंड वाली सुई के नाम से मशहूर है। इस सेकेंड वाली सुई का अपना आस्तित्व तो है लेकिन इसका उल्लेख कहीं नहीं होता।हर कोई कहता है कि दस बजकर दस मिनट हुए है। परन्तु ये कोई नहीं कहता है कि दस बजकर दस मिनट पंद्रह सेकेंड हुए है। जबकि यह सेकेंड वाली…
✍️टूटते तारो को देख उसने कहा मांगो कोई मुराद अरे उनको कोई समझाए जरा
हिंदी हूं फिर भी हिंदी में पहचान अस्वीकार है हिंदी भारत की राजभाषा है। पर लोग अपनी पहचान हिंदी के जगह अंग्रेजी में बता कर अपने को गर्व महसूस करते है।हिंदी को अपनी विचाधारा में बनाए रखने के लिए हिंदी का भी प्रचार पसार करना पर रहा है।आजकल कुछ घरों में बच्चे मेहमान के सामने हिंदी में गिनती …
कुछ कर लो यार ✍️चलो मै हारा तुम जीते क्या कीमती वक्त गवाकर, उसके जिंदगी के लिए किए क्या
बेवफ़ा ✍️मोहब्बत का इजहार करने में देरी क्या की मैंने रकीब से सौदा ही कर ली उसने
पहुंच से दूर शिक्षा उनके लिए कहा तय था शिक्षा हर बच्चो के लिए लेकिन पहुंच से दूर शिक्षा उन बच्चो के लिए यहां तो परिजन तकनीक से जुड़ने में असमर्थ लगते महामारी में उनकी स्थिति और दयनीय दिखते केवल दरख़्त के साये के शिक्षा बनी उनके लिए कहा तो तय था शिक्षा हर बच्चो के लिए लेकिन पहुंच से…
जिंदगी के हर जंग जीत जाएंगे ✍️रास्ते कितने भी कठिन हो मंजिल चाहे कितने भी आसमां पर हो
उठ मां ✍️अभी तक क्यों सोई है उठ जा अब सुबह हो गई मां मुझसे तू इतना क्यों इतना रूठ गई तू मुझको छोड़कर नहीं जा सकती है सुन तेरी बच्ची तुझे पुकारती है सुना है मां के रूप भगवान साथ रहते है तुझको मुझसे छीन ले वे इतने निष्ठुर नहीं होते है ये सियासत तो से पड़ा है …
हैवानियत कुछ पल और कर लो सब्र ✍️अब तो कुछ पल और कर लो सब्र लाशे दफन के लिए खोदे जा रहे कब्र भावनाओं का भी नहीं हो रहें कद्र अब तो जनावर भी नहीं बचा पा रहे गर्भ बेजुबानों का यही हालात दिखते है अब तो ईमान भी रद्दी के भाव बिकते है अपनों से कैसी है ये रंजीदा दिल्ली में उठा है ये मुद्दा लेकिन…
कैसी है महामारी फासला बढ़ा दी हमारी (कोरोना में न जाने कितने हमसे दूर चले गए ये कविता घर के छोटे छोटे बच्चे का दादा दादी से दूर होने की व्याकुलता को दर्शाती है) ✍️कैसी है ये महामारी फासला बढ़ा दी हमारी अन्तिम समय भी उनको न देख पाए अपने को भी अलविदा न कह पाए जिनसे मिलने के लिए रहत…
कहाँ हो मोहन ✍️कोई खोजे वृदावन मे तो कोई बिरज के गलियो कोई खोजे तुम्हें अपनी ध्यानों में तो कोई प्रेम के डगरो मे तुम कहाँ हो मोहन तुम कहाँ हो कोई खोजे यमुना के तटों पर तो कोई कदम के पेड़ों पे कोई खोजे गायो के झुंडो में तो कोई बाल गोपालो मे कहाँ हो मोहन कहाँ हो - अमरजीत
बिखरते पन्ने ✍️ये छिटक के बिखरते पन्ने क्या अकेले पूरी कर पाएंगे सपने कितने रेहाल बनेंगे अपने-अपने हल्की हवाओं से क्यों दूर जा रहे पन्ने क्या दो पन्ने की जोड़ती धागे कमजोर है या सिलने वाला मजबूर है क्या उस पाठक का कसूर है होती इन किताबो के टुकड़े पर कौन जिम्मेदार हैं अब हर पुस्तक क…
रक्षाबंधन शायरी सिमटती दुनिया में, क्यों बढ़ गई दूरियां बहनें ऑनलाइन ही बांध रही है राखियां
कितने आपदाएं से गुजरेगा बिहार बिहार ✍️कितने-कितने आपदाएं से गुजरेगा बिहार कभी सुख़ार तो कभी बाढ़ कभी लू तो कभी चमकी बुखार कभी वज्रपात तो कभी आकाल किस तंद्रा या निद्रा में है सरकार कोरोना ने सवाल किया ही अब कर रही है बाढ़ न जाने कहा नेत्र मुद बैठी है सरकार न कोई जनता से सुध ना कोई प्र…
कारगिल के विजय दिवस पर "मर कर भी वतन कि उल्फत नहीं निकलेगी जरा इस मिट्टी से तिलक लगा लो
हम उनको कहा चुनते है ✍️ एक वोट के लिए वे कितने चेहरे पर नकाब पहनेंगे काम निकल जाने के बाद "कौन है आप" जैसे सवाल करेगें फिर जन ऐसे लोगो को मतदान क्यों देती जिसकी सरकार सिर्फ अपनी उल्लू सीधा करती जो चुनावो में हाथ जोड़े आपके दरवाजे पर खड़े रहते हैं कल वे केवल अपने घर भरते हैं आए …
क्या करू साहब Lockdownमें पुलिस की सख्ती और लोग की मजबूरी ✍️समझता हूं घर में रहना कितना जरूरी है विवश होकर बाहर निकालना मेरी मजबूरी है साहब,इस पापी पेट का सवाल है मेरी आय का श्रोत रोज की मजदूरी है तृष्णाए भी नहीं मेरी दैनिक जरूरत में पर ना कुछ जमा है मेरी…
सुनी पड़ गई ये लहरें पलायन करते चिड़िया ✍️जब मेरी लहरों के साथ तेरी स्वर गुजती थी भर चारो तरफ खुशहाली सबको मंत्रमुग्ध कर देती थी अब सुनी पड़ गई है ये लहलाती लहरें वीरान जगहों में भी तुझे बुलाती है ये लहरें आकार इस धारा में फिर से शैर करना तू उड़ते-उड़ते थक गया ह…
मुफलिसी पिता को गोद में ले रोता बच्चा मुफलिसी पर क्या लिखूं मै अकसर नुकसान मुफलिसियो का होता है उस बच्चे के गोद में उसका बाप नहीं उस देश की मरी आत्मा पर वह बच्चा रोता है कैसी सिस्टम हो गई है हमारी जब कोई किसान कीटनाशक के दावा पी लेता है कोई भू माफिया सरकारी जमीन को किराए पर दे रहा तो सज…
दशरथ मांझी के दृढ़ दशरथ मझी के द्वारा बनाया गया सड़क ✍️आए जिंदगी में तूफ़ानों में साहिल छोड़ रचा इतिहास वह, इन पहाड़ों को तोड़ जिनके आगे पत्थर भी बिखेर गया जो अपनी मोहब्बत के नई छाप छोड़ गया भले वह आर्थिक से जर्जर था पर उसके दृढ़ बड़े कमाल था इश्क के लहरों के अद्भुत था माझी कोई नहीं वह है…
जब मिलने के तमन्ना थी तब उनके रास्ते में कई मोड़ आई सवालात करता हूं खुदा तुझसे अब मेरे मोड़ क्यों बनती है परछाई -अमरजीत --------******--------- प्यार की निशानी है ताजमहल तो क्यों है वह एक कब्रस्थल -अमरजीत _____*****_____ अपनी मोहब्बत …
शख्स शख़्स ✍️उसकी नवाज़िश में भी कोई साजिश लगती है ये बदलाव में उसकी कोई निजी खाहिश लगती है वरना जब माज़ी में आई थी खिजां तब उसको कोई मदद के लिए नहीं सुझा कर खिदमत अपने कामों कि सिफ़ारिश करता है बारूद तिलियो पर थी बदनाम माचिस को करता है वह शख्स अपने गलतियों पर झूठ के पर्दा …
विभन्नता ✍️ लोग हिन्दू और मुस्लिम के नाम पर क्यों लड़ते है एक बीज के दो फाड़ है ये बात क्यों नहीं समझते है लोग उन चिड़ियों और जानवरों से भी क्यों नहीं सीख रहे है बल्कि उससब को भी विभिन्न वर्गो और धर्मो में बॉट रखे है मंदिर में दाना चुंगती चिड़िया मस्जिद में पानी पीती है सुना…
ये जंजीर Lockdown ✍️कहां गुम हो गई इस खाली मयान कि शमशीर क्या कभी नहीं टूटेगी ये जंजीर अब ये मयान भी कर रही इल्तिज़ा क्या तेरे इल्म में नहीं कोई उपाय सूझा बहुत हुआ जकड़न में जीना किसी को अब बेवक्त नहीं है सोना इंसानों पर कैसी आन पड़ी ये मजबूरियां इस बेड़ियों ने बढ़ा दी अ…
बादल भी अश्रु बहाए ✍️ उन वीरों की शहादत पर ये बादल भी अश्रु बहाए शर्म नहीं आती उन सियासती पिदो को जो इस बात को भी राजनीति में घसीट लाए बड़े बनते हैं दानवीर लेकिन अंदर बह रही बेईमानी कि नीर अरे दो मुखटो वालों एक नौकरी और कुछ मुआवजे के वादे के आलावा बोलो क्या दे पाए अरे इस घ…
सियासत की भूख ✍️आज फिर सियासत दहक उठी उसमें पड़ी आहुतियां जल उठी सभी ने तान लिए है पर्तांचा सियासत में निब रखने की बड़ी है उत्कंठा देखना कैसे करेंगे कामप्रवेदन जनता से कैसे करेंगे निवेदन अपनी फसल के लिए चुनेंगे सिर्फ भूमि कृष्ट वे इस काम में है बड़े उत्कृष्ट हे राष्ट्र …
"बेटा के ये कैसा फ़र्ज़ ..." बेघर हुए मा-बाप ✍️जिनके आचल में जीवन पथ पर चलना सीखता है आज उस आचाल के धब्बा क्यों बन जाता है जिन उंगलियों के पकड़ चलना सीखता है आज उन उंगलियों के हाथो का सहारा क्यों नहीं बनना चाहता है जिन कंधो पर बैठ पूरा मेला घूमता है आज वह कंधे वाला एक बोझ क्यों …
मां तो मां होती है मां ✍️जब गुज़ उठ किलकारी घर के आंगन में सब हसे लेकिन मै रो रहा था
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कविता की सूची
- ❇️लाचार किसान
- ❇️दरिंदे
- ❇️मेहनतकश किसान
- ❇️जो छोड़ चला अपनी बुनियाद
- ❇️अपनी पहचान हिंदी में अस्वीकार है
- ❇️कुछ कर लो यार
- ❇️बेवफ़ा
- ❇️पहुंच से दूर वे शिक्षा उनके लिए
- ❇️ बादल भी अश्रु बहाए
- ❇️ बिहार में प्रलय
- ❇️ मां-बाप वृद्धाश्रम
- ❇️ विभिन्नता
- ❇️ सियासत की भूख
- ❇️उठ मां
- ❇️कहाँ हो मोहन
- ❇️कैसी है महामारी
- ❇️जिंदगी के हर जंग जीत जाएंगे
- ❇️दशरथ माझी
- ❇️बिखरते पन्ने
- ❇️माँ
- ❇️मुफलिसी
- ❇️मेरी मजबूरी
- ❇️मैं मजदूर पैसे के सामने मजबूर
- ❇️ये जंजीर
- ❇️शख्स
- ❇️सुनी पड़ गई नदिया
- ❇️हम उनको कहा चुनते है
- ❇️हैवानियत