घड़ी के तीन सुइयां होती है जिसमें एक सुई का नाम सेकंड वाली सुई के नाम से मशहूर है। इस सेकेंड वाली सुई का अपना आस्तित्व तो है लेकिन इसका उल्लेख कहीं नहीं होता।हर कोई कहता है कि दस बजकर दस मिनट हुए है। परन्तु ये कोई नहीं कहता है कि दस बजकर दस मिनट पंद्रह सेकेंड हुए है। जबकि यह सेकेंड वाली सुइ दोनों से ज्यादा कड़ी मेहनत और काम करती है और इन दोनों को आगे बढ़ाने में मदद करती है। इसी तरह हमारे जिंदगी में कई लोग इस सेकेंड वाली सुई की तरह है। जिनका जिक्र नहीं होता, लेकिन हमारे आगे बढ़ने में उनका अनोखा किरदार होता है।
वैसे ही किसी देश के किसान और मजदूर भी है।
मेरी ये कविता किसान पर है जो उनके स्थिति और मेहनत को दर्शाती है
मेहनतकश किसान
✍️वह मेहनतकश किसान,क्यों है परेशान
जो धरती मां के आंचल सजाता
विभिन्न अनाजों को उपजाता
वह अन्नदाता कहलाता
फिर वह मेहनतकश किसान क्यों है परेशान
जिसको धूप नहीं सताते
भीषण सर्दी या गर्मी नहीं डिगा पाते
जो सूर्य के पहली किरणे से बाजी लगाता
फिर वह मेहनतकश किसान क्यों है परेशान
जिसका घर है टूटा-फूटा
कभी बाढ ने तो कभी सूखार ने लुटा
बाहर से खुशमिजाज अंदर से टूटा
इसलिए वह मेहनतकश किसान है परेशान
जिसके घर में भुखमरी छाई है
जिसकी पैर कर्ज में समाई है
लाचारी गले में फंदे लगवाई है
इसलिए वह मेहनतकश किसान है परेशान
-अमरजीत
Bahut badhiya👌👌👌👌👌🙏🙏🙏🙏
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