पलायन करते पंक्षी
जब मेरी लहरों के साथ
तेरी स्वर गूंजती थी
भर चारो तरफ खुशहाली
सबको मंत्रमुग्ध कर देती थी
अब सुनी पड़ गई
ये ललाहती लहरे
वीरान जगहों में भी
तुझे बुलाती है लहरें
आकर इस धारा में
फिर से शैर करना ले तू
आकर मेरी जल से
फिर अपनी प्यास बुझा ले तू
अब तुम कहा चले गए
कमी खलती है तुम्हारी
तुम्हारे खोज में निकला मैं
समुंद्र तक आ पहुंची धारा हमारी
- अमरजीत
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