शायरिया
मै बिजली के खंबा
तू उसपे लटकती तार प्रिय
अब तेरी करेंटो पर
मेरी जान तुमपे कुर्बान प्रिय
- अमरजीत
मन में कैसी ये भूचाल है
हूं मौन पर घुटन वाचाल है
पर ये कैसा अंधकार है
बस एक सवाल (रास्ता) है
जिसका शोर अविराम है
जिसका शोर अविराम है..
- अमरजीत
कोशिशें तमाम थी कि पल भर ख्वाब बन सकेपर वह ख़त किताब के पन्नो में दब गया और मै बोल नहीं सका-अमरजीत
✍️गरीबों से नजदीक के रिश्ता को भी छिपाया जाता है
अमीर से दूर के रिश्ता को भी निभाया जाता
बस इतना कहुगा
शतरंज के खेल खत्म होने पर
राजा और मोहरे एक ही डब्बे में रखा जाता
- अमरजीत
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अरे साहब ये तेज आंधियां जिधर से गुजर रही है
उधर मेरी उम्मीदों के चिराग़ जल रही है
डर है कही आग पूरी बस्ती में नही लग जाए
- अमरजीत
भगवन ये पेट की आग है
जो तेरे बारिश से नही मिटेगी
ये गरीबी की दाग है
जो तेरे बारिश से नही धुलेगी
क्या तेरे लिए ये काफी नही
जिंदगी गुजर जाए स्याह रातों में
अब तो सोने के छत नही
इन बरसात रातों मेंं
- अमरजीत
आइने में अपनी चेहरे देख बहुत इतराते होगे
कुछ पल तो अपनी अंतर्मन में झाक लो
कितने कानूनों को उल्ट फेर करके बचोगे
जरा अपनी चेहरे से नकाब हटा के देख लो
-अमरजीत
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खुदखुशी समस्या के हल नही बताने वाला
आज अपने ही रिल को रियल जिंदगी में क्यों नहीं उतार पाया
बहुत उम्दा कलकार था क्या किरदार में चला गया
यूं बड़े महफिल के सितारा आज दो गंज रस्सी से हार गया
कैसी दर्द थी जिसने उसे सरेआम खा गया
- अमरजीत
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हम हर जगह लगहराएगें तिरंगा
ये हमारी शान है
अंतिम लहू तक न पड़ने देगे कोई धब्बा
ये हमारी जुबान है
जय हिन्द
-अमरजीत
हिंदी के आगे ये कैसी दीवार है
हिंदी हूं फिर भी अपनी पहचान
हिंदी में अस्वीकार है
-अमरजीत
हयात के कुछ वक्त धूप में भी होंगे क्योंकि दरख़्त में पत्ते हर मौसम में नहीं होते -अमरजीत |
यूं तो रिश्ता काफी नजदीक का था
तू जनवरी मै दिसम्बर था
पर तेरी हिज्र ने व्याख्या की
तेरे मेरे बीच दुरियां साल भर का था
- amarjeet
हम तो कभी जाति पर बिके तो कभी मजहब के नाम पर अपनी वोट की किमत कब सही रखी तो कैसे देखेेेंगे विकास के चादर खपरैल के मकानों पर -अमरजीत Read also TWO LINE SHAYARI |
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