जब मिलने के तमन्ना थी तब उनके रास्ते में कई मोड़ आई
सवालात करता हूं खुदा तुझसे अब मेरे मोड़ क्यों बनती है परछाई
-अमरजीत
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प्यार की निशानी है ताजमहल
तो क्यों है वह एक कब्रस्थल
-अमरजीत
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अपनी मोहब्बत के लिए महल के नीव खोद रहा था
वह समझ रही थी की मै उनके लिए कब्र खोद रहा था
मै देख न पाया कि उनमें ऐसी गलतफमी पनम रहा था
-अमरजीत
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देखकर दुनिया की बेरूखी न पूछो हमारा हाल कैसा है
बस इतना कहूंगा घोल ली है सारी यादों को
जिसका स्वाद एक जाम जैसा है
- अमरजीत
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अपने मोहब्बत का जहां लगा था अर्जी
वह कोतवाल भी निकला फर्जी
- अमरजीत
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जब से शब्दों को श्रृंगार रस में घोला है
अक्षर - अक्षर मादक है,
शब्दों के मन डोला है
- amarjeetpoetry
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अधूरे चांद थे पूर्ण होने से पहले
कमबख्त ग्रहण लग गई
- अमरजीत
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हमारी नज़रें कभी इतना भ्रम में क्यों रहती
दूर से रास्ते को संकरे देखती
लेकिन दूसरी छोर खड़ी उनसे
दूरियां नहीं नापती
- अमरजीत
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गोते तो लगाव जनाब
इसी तरह लकीर नहीं बनती आब में
सुना है खोज में निकले हो महताब के
- अमरजीत
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