कभी सुख़ार तो कभी बाढ़
कभी लू तो कभी चमकी बुखार
कभी वज्रपात तो कभी आकाल
किस तंद्रा या निद्रा में है सरकार
न जाने कहा नेत्र मुद बैठी है सरकार
न कोई जनता से सुध ना कोई प्रतिकार
किस तंद्रा या निंद्रा में है सरकार
आहार के बिना जनता तरसे
इलाज की अभाव में बेमौत मरे
उनको तो बस चुनाव दिखे
नहीं पड़ता उनको कोई प्रभाव
न जाने किस तंद्रा या निंद्रा में है सरकार
-अमरजीत
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