बिखरते पन्ने
✍️ये छिटक के बिखरते पन्ने
क्या अकेले पूरी कर पाएंगे सपने
कितने रेहाल बनेंगे अपने-अपने
हल्की हवाओं से क्यों दूर जा रहे पन्ने
क्या दो पन्ने की जोड़ती धागे कमजोर है
या सिलने वाला मजबूर है
क्या उस पाठक का कसूर है
होती इन किताबो के टुकड़े पर कौन जिम्मेदार हैं
अब हर पुस्तक के यही कहानी
गर समय मिले तो गौर फरमानी
इन पन्नो का उन पांडुलिपियो कि तरह बन जाए ना कोई कहानी
उन हवाओ से इन टुकड़ो को है बचानी
डर है कहीं ये पन्ने कचरे के डब्बे में न चला जाए
बढ़ती मांगों से उस पेड़ का पैर कब्र में न चला जाए
अब तो फेबीगम के प्रभाव भी बेअसरदार है
होती किताबों के टुकड़े पर कौन जिम्मेदार है
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