ALL RIGHTS RESERVED

DMCA.com Protection Status

सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Translate

मेरी मजबूरी

क्या करू साहब

Lockdownमें पुलिस की सख्ती और लोग की मजबूरी
                                
✍️समझता हूं घर में रहना कितना जरूरी है
विवश होकर बाहर निकालना मेरी मजबूरी है
साहब,इस पापी पेट का सवाल है
मेरी आय का श्रोत रोज की मजदूरी है

तृष्णाए भी नहीं मेरी दैनिक जरूरत में
पर ना कुछ जमा है मेरी बचत में
साहब,जिस दिन दिहाड़ी नहीं मिलती
तो घर की चूल्हा नहीं जलता उस रात में

मेरी आर्थिक पहले से जर्जर था
मेरे जीवन के पेड़ में नहीं मंजर था
साहब, इस लॉकडाउन ने भी
बना दी मेरी सावन पतझड़ सा

घर पर रहूं तो भुखमरी का डर है
बाहर कोरोना का कहर है
क्या करू साहब मै भी असमंजस में हूं
मेरी जिंदगी की हालात पहले से भी बदतर है

                                       -अमरजीत



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

Your valuable comment inspired me 💖

Copyright (c) 2021 AMARJEET POETRY All Right Reserved