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जलियांवाला बाग

 

amarjeet poetry

अभी भी वहां की हवाएं महसूस कराती है

निहत्थे लोगों के संहार के धधकती ज्वाला

देखकर रूहे काप जाती है

बागो के बीच वह खुला कुआं

क्या तुम्हे याद है वह रात काली

जिस क्रांति क्षेत्र में चली थी

निहत्थे लोगों पर अंधाधुन गोली

कैसे भुल सकता है उस आग को

खुनो से लथपथ उस जालियांवाला बाग को

आजादी के जोश से भरे नारो के बीच

अचानक निसहाय लोगो के चीखे चीत्कार को

देखकर अंदर से पीड़ा जन्म ले लेती

गोलियों से बौछार में समाई उस चार दीवार को

कैसे भुल सकता उस बैसाखी के दाग को

खुनो से लथपथ उस जालियांवाला बाग को

- अमरजीत






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