अभी भी वहां की हवाएं महसूस कराती है
निहत्थे लोगों के संहार के धधकती ज्वाला
देखकर रूहे काप जाती है
बागो के बीच वह खुला कुआं
क्या तुम्हे याद है वह रात काली
जिस क्रांति क्षेत्र में चली थी
निहत्थे लोगों पर अंधाधुन गोली
कैसे भुल सकता है उस आग को
खुनो से लथपथ उस जालियांवाला बाग को
आजादी के जोश से भरे नारो के बीच
अचानक निसहाय लोगो के चीखे चीत्कार को
देखकर अंदर से पीड़ा जन्म ले लेती
गोलियों से बौछार में समाई उस चार दीवार को
कैसे भुल सकता उस बैसाखी के दाग को
खुनो से लथपथ उस जालियांवाला बाग को
- अमरजीत
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
Your valuable comment inspired me 💖