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मा-बाप वृद्धाश्रम

"बेटा के ये कैसा फ़र्ज़ ..."

बेघर हुए मा-बाप

✍️जिनके आचल में जीवन पथ पर चलना सीखता है
आज उस आचाल के धब्बा क्यों बन जाता है
जिन उंगलियों के पकड़ चलना सीखता है
आज उन उंगलियों के हाथो का सहारा क्यों नहीं बनना चाहता है
जिन कंधो पर बैठ पूरा मेला घूमता है
आज वह कंधे वाला एक बोझ क्यों बन जाता है
वह बेटा ये कैसा कर्ज चुकता है
अपनी ही मां - बाप को बेघर करता है
उनके टूटे चश्मा और घुटने का दर्द से घर का खर्चा बढ़ता दिखता है
दम तोड़ रही मा वृद्धाश्रम में बेटा सोशल मीडिया पर happy mother's Day क्यों लिखता है
हे खुदा तेरे दरबार में ऐसे जुर्म के फैसला में देरी क्यों होता है
जब कोई बेटा अपनी फ़र्ज़ को ऐसा आदा करता है
क्या तुमको आघात नहीं पहुंचाता है
जब तेरे प्रतिबिंब को कोई ऐसे चोट पहुंचाता है

                                                   -अमरजीत

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