उठ मां
✍️अभी तक क्यों सोई है उठ जा अब सुबह हो गई
मां मुझसे तू इतना क्यों इतना रूठ गई
तू मुझको छोड़कर नहीं जा सकती है
सुन तेरी बच्ची तुझे पुकारती है
सुना है मां के रूप भगवान साथ रहते है
तुझको मुझसे छीन ले वे इतने निष्ठुर नहीं होते है
ये सियासत तो से पड़ा है मां तू क्यों सोई है
तेरे छोड़ इस दुनिया में अपना नहीं कोई है
उठ मां अभी भी अपनी मंजिल दूर जान पड़ती है
तेरे बिना ये पथ जटिल और अनजान पड़ती है
इतनी थकावट नहीं हो सकती तेरे शरीर में
उठ, तेरे बिना कैसे लड़ सकुगी इस शहर में
यहां सारे मतलब का साथी लगते है
जो बनना भी चाहे अपना वह हमसे काफी दूर रहते है
उठ मां अब तू बहुत सोई
तुझे जगा जगा के मै भी थक गई
उठ ना मां अब बहुत देर हुई-2
-अमरजीत
Bahut bhawnatmak
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