हिंदी हूं फिर भी हिंदी में पहचान अस्वीकार है
हिंदी भारत की राजभाषा है। पर लोग अपनी पहचान हिंदी के जगह अंग्रेजी में बता कर अपने को गर्व महसूस करते है।हिंदी को अपनी विचाधारा में बनाए रखने के लिए हिंदी का भी प्रचार पसार करना पर रहा है।आजकल कुछ घरों में बच्चे मेहमान के सामने हिंदी में गिनती सुना दे तो अपमान महसूस करते लेकिन वे भी हिंदी दिवस पर उन्हीं बच्चे से हिंदी के कुछ पंक्ति बुलावा कर फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया पर बधाई बटोर रहे।ये उनका दोष नहीं ये वर्तमान की मांग है। आजकल कहीं भी इंटरव्यू के लिए जाइए तो सबसे पहले अंग्रेजी ही बोलने वाला चाहिए।इसलिए तो माता-पिता असमर्थ होते हुए भी अपने बच्चे को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाते है। भले बच्चे को अंग्रेजी समझ में आए या न आए या अंग्रेजी के शब्द से उनके अंदर की विचार प्रकट हो या न हो अंग्रेजी सीखने के लिए दिन रात एक कर देते है।
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
ये कविता हिन्दी दिवस पर लिखी है जो दर्शाती है कि लोग हिंदी को अपनी पहचान बनाने से दूर जा रहे है।
हिंदी हूं फिर भी अपनी पहचान हिंदी में अस्वीकार है
✍️हिंदी के आगे ये कैसी दीवार है
हिंदी हूं फिर भी अपनी पहचान हिंदी में अस्वीकार है
भले हिंदी हमारी अभिमान है
बोली जाने में विश्व में तीसरा स्थान है
वर्णमाला इसकी ध्वन्यात्मक एवं सर्वाधिक व्यवस्थित है
संस्कृत की ये बड़ी बेटी है
पर सर पे अंग्रेजी का भूत सवार है
हिंदी हूं फिर भी अपनी पहचान हिंदी में अस्वीकार है
-अमरजीत
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