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विभन्नता

विभन्नता

Amarjeet poetry


✍️ लोग हिन्दू और मुस्लिम के नाम पर क्यों लड़ते है
एक बीज के दो फाड़ है ये बात क्यों नहीं समझते है
लोग उन चिड़ियों और जानवरों से भी क्यों नहीं सीख रहे है
बल्कि उससब को भी विभिन्न वर्गो और धर्मो में बॉट रखे है
मंदिर में दाना चुंगती चिड़िया मस्जिद में पानी पीती है
सुना है दशहरे मे चढ़ने वाली चुनरी कोई सलमा बेगम सिलती है 
लोग रंगो को भी धर्मो में बॉट रखे है
हरे रंग इसका तो भगवा रंग उसका कह रखे है
लेकिन मां दुर्गा को सजाते वक्त हरे रंग का जुड़ा और चोली पहनाते
तो दर्गा में बड़े-बड़े पिर फकीर के मंजार पर केसरिया रंग का चादर चढ़ाते
मुझे तो हर शख्स में एक इंसान ही दिखाई देता है
रफ़ी के रघुपति और प्रेमचंद का ईदगाह सुनाई देता है
क्यों नहीं लोगो को सबके एक खून दिखाई देता है
मुझे तो कलाम के मिसाइल और अम्बेडकर के संविधान दिखाई देता है
न हिन्दू बुरा है न मुस्लमान बुरा होता है
जिसका किरदार बुरा होता वह इंसान बुरा होता है
हिन्दू कहे बड़े है हम और मुस्लिम कहे हम
न कोई ज्यादा नहीं है कोई कम
न जाने क्यों आपस में लड़ते है
एक ही बात को ले आपस में लड़ते है
अमरजीत, ये भेदभाव की गाथा धर्मो तक नहीं सीमित है
किसी अन्य दिन बताऊंगा आज जाने की इजाज़त लेते है

                                                             -अमरजीत




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