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नासमझ ही सही | दर्द भरी कविता

 नासमझ ही सही


एक दूजे के जानने बाद भी नासमझ बनना

चलो अच्छा है मै नासमझ ही सही

मेरा गुरूर कहो या शख्शियत

मै समझाऊ तो कैसे समझाऊं

चलो अच्छा है तेरी नज़रों में मै खुदगर्ज ही सही

तुम समझती हैं हमे दर्द ही नहीं है

कैसे कहूं, तुझे सकू नहीं थी मैंने भी नहीं सोया है

यकीन कर तेरी यादें मेरी खिड़कियों से कई बार गुजरा है

चलो अच्छा है इश्क में ये मर्ज भी सही

एक दूजे के जानने के बाद भी नासमझ बनना

चलो अच्छा है मै नासमझ ही सही

                       - अमरजीत


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