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उठ मां

उठ मां ✍️अभी तक क्यों सोई है उठ जा अब सुबह हो गई मां मुझसे तू इतना क्यों इतना रूठ गई तू मुझको छोड़कर नहीं जा सकती है सुन तेरी बच्ची तुझे पुकारती है सुना है मां के रूप भगवान साथ रहते है तुझको मुझसे छीन ले वे इतने निष्ठुर नहीं होते है ये सियासत तो से पड़ा है …

हैवानियत

हैवानियत कुछ पल और कर लो सब्र ✍️अब तो कुछ पल और कर लो सब्र लाशे दफन के लिए खोदे जा रहे कब्र भावनाओं का भी नहीं हो रहें कद्र अब तो जनावर भी नहीं बचा पा रहे गर्भ बेजुबानों का यही हालात दिखते है अब तो ईमान भी रद्दी के भाव बिकते है अपनों से कैसी है ये रंजीदा दिल्ली में उठा है ये मुद्दा लेकिन…

कैसी है महामारी

कैसी है महामारी फासला बढ़ा दी हमारी  (कोरोना में न जाने कितने हमसे दूर चले गए ये कविता घर के छोटे छोटे बच्चे का दादा दादी से दूर होने की व्याकुलता को दर्शाती है) ✍️कैसी है ये महामारी फासला बढ़ा दी हमारी अन्तिम समय भी उनको न देख पाए अपने को भी अलविदा न कह पाए जिनसे मिलने के लिए रहत…

कहाँ हो मोहन

कहाँ हो मोहन ✍️कोई खोजे वृदावन मे तो कोई बिरज के गलियो कोई खोजे तुम्हें अपनी ध्यानों में तो कोई प्रेम के डगरो मे तुम कहाँ हो मोहन तुम कहाँ हो कोई खोजे यमुना के तटों पर तो कोई कदम के पेड़ों पे कोई खोजे गायो के झुंडो में तो कोई बाल गोपालो मे कहाँ हो मोहन कहाँ हो               - अमरजीत

बिखरते पन्ने

बिखरते पन्ने   ✍️ये छिटक के बिखरते पन्ने क्या अकेले पूरी कर पाएंगे सपने कितने रेहाल बनेंगे अपने-अपने हल्की हवाओं से क्यों दूर जा रहे पन्ने क्या दो पन्ने की जोड़ती धागे कमजोर है या सिलने वाला मजबूर है क्या उस पाठक का कसूर है होती इन किताबो के टुकड़े पर कौन जिम्मेदार हैं अब हर पुस्तक क…

रक्षाबंधन शायरी

रक्षाबंधन शायरी सिमटती दुनिया में, क्यों बढ़ गई दूरियां बहनें ऑनलाइन ही बांध रही है राखियां

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