हैवानियत कुछ पल और कर लो सब्र ✍️अब तो कुछ पल और कर लो सब्र लाशे दफन के लिए खोदे जा रहे कब्र भावनाओं का भी नहीं हो रहें कद्र अब तो जनावर भी नहीं बचा पा रहे गर्भ बेजुबानों का यही हालात दिखते है अब तो ईमान भी रद्दी के भाव बिकते है अपनों से कैसी है ये रंजीदा दिल्ली में उठा है ये मुद्दा लेकिन…
कैसी है महामारी फासला बढ़ा दी हमारी (कोरोना में न जाने कितने हमसे दूर चले गए ये कविता घर के छोटे छोटे बच्चे का दादा दादी से दूर होने की व्याकुलता को दर्शाती है) ✍️कैसी है ये महामारी फासला बढ़ा दी हमारी अन्तिम समय भी उनको न देख पाए अपने को भी अलविदा न कह पाए जिनसे मिलने के लिए रहत…
कहाँ हो मोहन ✍️कोई खोजे वृदावन मे तो कोई बिरज के गलियो कोई खोजे तुम्हें अपनी ध्यानों में तो कोई प्रेम के डगरो मे तुम कहाँ हो मोहन तुम कहाँ हो कोई खोजे यमुना के तटों पर तो कोई कदम के पेड़ों पे कोई खोजे गायो के झुंडो में तो कोई बाल गोपालो मे कहाँ हो मोहन कहाँ हो - अमरजीत
बिखरते पन्ने ✍️ये छिटक के बिखरते पन्ने क्या अकेले पूरी कर पाएंगे सपने कितने रेहाल बनेंगे अपने-अपने हल्की हवाओं से क्यों दूर जा रहे पन्ने क्या दो पन्ने की जोड़ती धागे कमजोर है या सिलने वाला मजबूर है क्या उस पाठक का कसूर है होती इन किताबो के टुकड़े पर कौन जिम्मेदार हैं अब हर पुस्तक क…
रक्षाबंधन शायरी सिमटती दुनिया में, क्यों बढ़ गई दूरियां बहनें ऑनलाइन ही बांध रही है राखियां
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कविता की सूची
- ❇️लाचार किसान
- ❇️दरिंदे
- ❇️मेहनतकश किसान
- ❇️जो छोड़ चला अपनी बुनियाद
- ❇️अपनी पहचान हिंदी में अस्वीकार है
- ❇️कुछ कर लो यार
- ❇️बेवफ़ा
- ❇️पहुंच से दूर वे शिक्षा उनके लिए
- ❇️ बादल भी अश्रु बहाए
- ❇️ बिहार में प्रलय
- ❇️ मां-बाप वृद्धाश्रम
- ❇️ विभिन्नता
- ❇️ सियासत की भूख
- ❇️उठ मां
- ❇️कहाँ हो मोहन
- ❇️कैसी है महामारी
- ❇️जिंदगी के हर जंग जीत जाएंगे
- ❇️दशरथ माझी
- ❇️बिखरते पन्ने
- ❇️माँ
- ❇️मुफलिसी
- ❇️मेरी मजबूरी
- ❇️मैं मजदूर पैसे के सामने मजबूर
- ❇️ये जंजीर
- ❇️शख्स
- ❇️सुनी पड़ गई नदिया
- ❇️हम उनको कहा चुनते है
- ❇️हैवानियत